आजकल चुनाव का मौसम क्या खूब चल रहा है ! जिसे देखिये इसी की चर्चा है | कांग्रेस को कुछ जानकार इस बार पिटा हुआ मोहरा मान रहे हैं तो कुछ लोग अभी भी केजरीवाल राग अलाप रहे हैं | इन सबमें जो पार्टी आगे नज़र आ रही है, वो भाजपा है | मोदी इस समय अपने प्रतिद्वंदियों से काफी आगे दिख रहे हैं, मगर कुछ बातें जो पार्टी के अन्दर घट रही हैं; वो इस लोकप्रियता को सत्ता के सिंहासन तक ले जाने में रुकावट न बन जाएं | सबसे अहम् बात है पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का टिकट न मिलने पर रूठना और बागी तेवर अपनाना | हालांकि इनमें से कई नेता टिकट के स्वाभाविक उम्मीदवार थे | जसवंत सिंह, हरेन पाठक, लालजी टंडन, लालमुनी चौबे, नवजोत सिंह सिद्धू आदि को टिकट न मिलना इस बात का प्रमाण है की भाजपा के अन्दर सब-कुछ ठीक नहीं है | भले ही सब कुछ रणनीति के अंतर्गत किया गया हो, पर कम से कम इन नेताओं को विश्वास में जरूर लेना चाहिए था | एक तरफ जहां भाजपा में दूसरे दलों से आने के लिए होड़ मची है और जो नेता आ रहे हैं उन्हें टिकट मिलना और दूसरी तरफ पार्टी के पुराने नेताओं की अवहेलना करना निसंदेह पार्टी के लिए उचित नहीं है | कहीं इसके पीछे ये तो नहीं कि जो नेता बाद में किसी बात पर अडंगा लगा सकते हैं, उन्हें पहले ही रास्ता दिखाया जा रहा है !
अब अन्य पार्टियों की भी बात कर लें | कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ नेता जैसे जगदम्बिका पाल, सतपाल महाराज, सोनाराम आदि कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं | कई नेता चुनाव से परहेज कर रहे थे पर हाईकमान के दबाव में मैदान में उतर रहे हैं | टिकट की मारामारी यहाँ उतनी नहीं है जितनी भाजपा और आम आदमी पार्टी में है | आप आदमी पार्टी में टिकट के लिए कई जगह इनके अपने ही कार्यकर्ता नाराज़ है और वे पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप लगा रहे हैं | तीसरा मोर्चा इस बार भी फुसफुसा रहा है पर इसका वास्तविक अंजाम तो चुनाव बाद ही पता लगेगा |
सबसे रोचक बात ये है कि जो नेता कल किसी अन्य दलों से दूसरे दल या पार्टी में शामिल हुए हैं, उनकी भाषा अचानक बदलना | कल तक जिसे गालियाँ देते, आरोप लगाते थकते नहीं थे और टी.वी. चैनलों पर तमाम बुराइयां गिनाते थे; आज उनकी तारीफ़ में खूब कसीदे पढ़ रहे हैं | इतनी जल्दी और एकाएक ह्रदय-परिवर्तन तो डाकू अंगुलिमाल का भी नहीं हुआ था | वाह! इस चुनावी मौसम का जनता खूब आनंद ले रही है | चलिए हम सभी मिलकर कहते हैं - लोकतंत्र की जय.....
अब अन्य पार्टियों की भी बात कर लें | कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ नेता जैसे जगदम्बिका पाल, सतपाल महाराज, सोनाराम आदि कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं | कई नेता चुनाव से परहेज कर रहे थे पर हाईकमान के दबाव में मैदान में उतर रहे हैं | टिकट की मारामारी यहाँ उतनी नहीं है जितनी भाजपा और आम आदमी पार्टी में है | आप आदमी पार्टी में टिकट के लिए कई जगह इनके अपने ही कार्यकर्ता नाराज़ है और वे पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप लगा रहे हैं | तीसरा मोर्चा इस बार भी फुसफुसा रहा है पर इसका वास्तविक अंजाम तो चुनाव बाद ही पता लगेगा |
सबसे रोचक बात ये है कि जो नेता कल किसी अन्य दलों से दूसरे दल या पार्टी में शामिल हुए हैं, उनकी भाषा अचानक बदलना | कल तक जिसे गालियाँ देते, आरोप लगाते थकते नहीं थे और टी.वी. चैनलों पर तमाम बुराइयां गिनाते थे; आज उनकी तारीफ़ में खूब कसीदे पढ़ रहे हैं | इतनी जल्दी और एकाएक ह्रदय-परिवर्तन तो डाकू अंगुलिमाल का भी नहीं हुआ था | वाह! इस चुनावी मौसम का जनता खूब आनंद ले रही है | चलिए हम सभी मिलकर कहते हैं - लोकतंत्र की जय.....
खद्दर पहने बाहर निकले, देश लुटाते गंदे लोग !
ReplyDeleteजनमानस में आग लगाने,घर से जाते गंदे लोग !
राजनीति में चोर बताया जाए, अच्छे लोगों को !
अपना माल छिपा गहरे आरोप लगाते,गंदे लोग !
सतीश जी ने कह दी मेरी बात पहले ही :)
ReplyDeletenice
ReplyDeleteGirgit bhee in logo se rang bharvaane aate hoga apne khoon mein.
ReplyDeletebhagwaan hi malik hai desh..ka .....
ReplyDeleteरातों-रात बदल गए, नेताओं के रंग
ReplyDeleteकलतक जिसके साथ थे, आज उसी से जंग
राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दीखता नहीं ! देखिये क्या होता है
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दीखता नहीं ! देखिये क्या होता है
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राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दीखता नहीं ! देखिये क्या होता है
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दीखता नहीं ! देखिये क्या होता है
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राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दीखता नहीं ! देखिये क्या होता है
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
शायद इसलिए कहते हैं कि राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है न कोई दुश्मन.
ReplyDeleteनई पोस्ट : सिनेमा,सांप और भ्रांतियां
शायद इसलिए कहते हैं कि राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है न कोई दुश्मन.
ReplyDeleteनई पोस्ट : सिनेमा,सांप और भ्रांतियां
ख़ूब!
ReplyDeleteजब जह।ज डूबने लगत। है , तब चूहे भी जह।ज छोड़ कर भागने लगतें हैं ।
ReplyDelete.............सही बात
ReplyDeleteटोपी बंडी कुर्ता क्या है पाजामें फटवा दूँगा ॥
संसद से हर गली सड़क तक हंगामें मचवा दूँगा ॥
मैं मतदाता हूँ विवेक से वोट अगर देने चल दूँ ,
कितने ही कुर्सी सिंहासन उलट पलट करवा दूँगा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
http://www.drhiralalprajapati.com/2013/04/186.html
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसामयिक आलेख
ReplyDeleteachha likha hai
ReplyDeleteshubhkamnayen