आखिर एक और हार हो गयी। और वो भी पाकिस्तान से......क्या हो गया है हमारे सबसे सफल कप्तान को ? हर पासा उल्टा पड़ रहा है। जो भी चाल इस समय धोनी चल रहे हैं वह दांव हार जाते हैं। कुछ तो गड़बड़ जरूर है ( धारावाहिक " सी.आई.डी" के प्रद्युम्न की तरह)। है न ! लेकिन इसमें उनकी ख़ुद की गलतियाँ ज्यादा हैं। क्या जरूरत थी आठ-आठ बल्लेबाज खिलाने की ? क्या जरूरत पड़ गयी थी केवल तीन विशेषज्ञ गेंदबाजों को लेकर मैदान में उतरने की ? इतना सब किया तो किया पर क्या जरूरत थी आखिरी ओवर जडेजा से कराने की ? आखिरी ओवर के लिये पहले से कोई योजना क्यों नहीं बनी ? जडेजा पिछले दस मैचों में न तो बल्लेबाजी में चल रहें हैं न तो गेंदबाजी में। उन्होंनें दस मुकाबलों में केवल 18 रन बनाये हैं और केवल चार विकेट लिया है। फिर उन्हें खिलाने की जरूरत क्या है ? युसुफ पठान और इरफान पठान में से भी कोई होता तो इतने बुरे हालात नहीं होते। बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों की शुरुआत शानदार होते हुए भी हम मैच हार रहे हैं। क्यों ? क्या कोई जवाब मिलने वाला है ?
Thursday 27 December 2012
Wednesday 19 December 2012
डंकन फ़्लेचर क्यों?
Photo from znn.india.com
दोस्तों ! भारतीय क्रिकेट आज जितना नीचे जा चुका है, वह किसी से छुपा नहीं है। लेकिन मूल कारण क्या है इस पर चर्चा बहुत ही कम होती है। वह कारण है भारतीय टीम का कोच। भारत ने विदेशी कोच रखने का जो सिलसिला प्रारम्भ किया है वह कुछ समय के लिये तो ठीक था परन्तु हमेशा के लिये ठीक नहीं है। सभी विदेशी कोच अच्छी नीयत के साथ भारत नहीं आते। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण ग्रेग चैपल हैं। अपने कोच रहते ग्रेग चैपल अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि भारत की लुटिया पूरी तरह से डुबो दी जाए। टीम के सदस्यों में आपसी मनमुटाव को बढ़ावा देना, अच्छे खिलाड़ियों की गेंदबाजी या बल्लेबाजी बिगाड़ना, भारतीय क्रिकेट को रसातल में ले जाना इत्यादि ये सभी ग्रेग चैपल की प्राथमिकताएं थी जिसे काफी हद तक उन्होंने पूरा किया। अब यही काम डंकन फ्लेचर कर रहे हैं। गैरी कर्स्टेन इसके अपवाद थे और टीम का प्रदर्शन भी उस समय अच्छा था इसलिए वो बच गये। मेरे विचार से भारत का कोच किसी भारतीय को ही होना चाहिए क्योंकि भारतीय कोच ही यहाँ के खिलाड़ियों की भावना को और खेल में हार-जीत की वजह से पूरे भारत की जनता की भावना को समझ सकता है और उसका उपाय ढूंढ सकता है। विदेशी कोच तो बस पैसे के लिए यहाँ आते हैं और अपना उल्लू सीधा कर चलते बनते हैं, उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं बनती। है कि नहीं ! आप का विचार क्या है ?
Saturday 15 December 2012
वन-टू का फ़ोर, फ़ोर-टू का वन
मित्रों ! जैसे-जैसे समय बीत रहा है हम सभी ब्लागरों को ज्ञान प्राप्त हो रहा है कि कई-कई ब्लागों से अच्छा है एक ही ब्लाग होना। मैंने भी अब केवल दो ब्लाग रखने का फैसला किया है- एक अपनी रचनाओं के लिए और एक भारत के दूसरे विभिन्न रचनाकारों के लिए। अपने अन्य रचनाकारों के लिये मौजूद दो ब्लागों "समकालीन ग़ज़ल" और "बनारस के कवि और शायर" को मिलाकर एक ब्लाग मे समाहित कर मैंने ये ब्लाग "गीत,ग़ज़ल,कविता की दुनिया" बनाया है। सबसे पहले दोनो ब्लागों के पुराने पोस्ट मैंने इस पर पोस्ट किया है। आशा है आप को भी सुविधा होगी......
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