मित्रों ! उत्तराखंड की घटना ने एक ऐसा घाव छोड़ा है जो शायद बरसों तक नहीं भर सकता | सबसे ज्यादा दुःख तो तब हुआ जब उस समय की कई घटनाओं के बारे में पता चला | कोई पानी बिना मर रहा था और कुछ लोग उस समय पानी का सौदा कर रहे थे और २०० रुपये अधिक दाम एक बोतल पानी का वसूल रहे थे | कुछ उस समय लाशों पर से गहने उतार रहे थे, और इसके लिए उन्होनें उन शवों की उंगलियाँ काटने से गुरेज नहीं किया | उनके सामने कई लोग मदद के लिए पुकार रहे थे मगर उन्होंने उन्हें अनसुना कर अपना काम जारी रखा | क्या हो गया है हमारे समाज को ? मानवता को ? कुछ पंक्तियाँ अपने–आप होंठ गुनगुनाते गए जिन्हें मैं आप को प्रेषित कर रहा हूँ |
बीते पल ये कहते गुजरे, संभलो आगे और पतन है |
लुटे हुए को लूट रहे हैं, मरे हुए को काट रहे हैं;
कुछ ऐसे हैं आफ़त में भी; रुपये, गहने छांट रहे हैं;
मरते रहे कई पानी बिन, वे अपने धंधे में मगन हैं......
जो शासक हैं देख रहे हैं, उनको बस अपनी चिंता है;
मरती है तो मर जाए ये, ये जनता है वो नेता हैं;
आग लगाने खड़े हुए हैं जनता ओढ़े हुए कफ़न है...
भर जाते हैं घाव बदन के, मन के जख्म नहीं भरते;
आफ़त ही ये ऐसी आई, करते भी तो क्या करते;
क्या वे फिर से तीर्थ करेंगे, उजड़ा जिनका ये जीवन है...
ऐसी घटनाएं इंसानीयत खत्म होना बयां करती है। आपकी संवेदनशील आत्म विह्वल हो थरथरा रही है नतिजन चंद शब्दों में आपने समय को बांधा।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
सुन्दर अद्भुत लेखनी को मेरा हार्दिक अभिनन्दन ……
ReplyDeleteबहुत सटीक और सार्थक लेखन , अब अगर नहीं सम्हले तो आगे पतन ही पतन है ।
ReplyDeleteसचमुच मानवता तारतार है .....सार्थक लेखन
ReplyDeleteऐसे ही परख होती है कि आदमी कितना आदमी है!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteबधाई-
बेहद शर्मनाक घटना की हकीकत को बेहद संजीदगी से शब्दों के मध्यम से व्यक्त है
ReplyDeleteगहरा क्षोभ और दर्द लिए है रचना .... शर्म की बात है ... इन्सान कैसे दूसरे की मजबूरी का फायदा उठता है ...
ReplyDeleteबेहद शर्मनाक स्थिति...अंतस को झकझोरती बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआखिर ऐसा क्यूँ ?
ReplyDeleteबस यही प्रश्न जहन में उठता है
आखिर मानवता कहाँ चली गई ....
मर्मस्पर्शी रचना
आज के हालात पर सटीक रचना ... मानवता नाम का शब्द अब क्या लोगो के शब्द कोष से मिट ही जायेगा ??
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक पंक्तियां।
ReplyDeleteशर्म की तो बात है ही, पर इन्हें शर्म कहां आती है? बहुत सटीक.
ReplyDeleteरामराम.
man ke jhakhm nahin bharte ....!!
ReplyDeletesach likha hai ...!!bahut sharmanaak laga sab sun kar ,sab padh kar ....!!
अपनी भावनाओं को बहुत ही सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है आपने..
ReplyDeleteउत्तराखण्ड की पीड़ा गीत में उतर आई है।
ReplyDeleteइंसानियत शर्मसार है। संवेदनशील कविता में आपने सबकी भावनाओं को रूप दिया है।
ReplyDeleteये घटनाएँ मानवता को शर्मसार करने वाली हैं. क्या कहें.
ReplyDeleteबेहतरीन मार्मिक प्रस्तुति.
badiya
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletevery appealing presentation.
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